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असंगघोष..

मैंने आज देखा है

जलता हुआ अंगारा

सूरज के मानिन्द

भष्मीभूत  करता

“असंगघोष”*

अनवरत करता ,

अनावृत्त ..

रूढ़ियों को छील कर

पूछता उसका पता

दासता की लकीर पर

अपनी पैनी कलम से

बड़ी लाइन खीचता,

अपने धारदार प्रश्नों की  

अचूक बौछार कर

ध्वस्त  करने में लगा है।

एक दिन

असंगघोष की

प्रलयंकारी ऊर्जा

बन सकेगी ,

जयघोष..जयघोष..जयघोष..

*एक उभरता दलित कवि जो

प्रशासनिक अधिकारी भी है

एक जोड़ी चप्पल

दुख्यामा (बघेली)