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अहंकार एक बोझ

रे भाई..अपनी गलती को सुधारने के लिए दूसरे जनम का इंतजार करोगे ?जब तुम अपने बुने  मकडजाल का स्वयं  समाधान नही कर सकते तो आनेवाली पीढ़ी से इसकी आशा व्यर्थ है l अब सोचने का तो वक्त भी नही बचा है अब कर सको तो ही अच्छा…अपने चश्मे को ठीक करो , सोच में बदलाव लाकर तो देखो लेकिन हाँ निर्णय तुम्हारा खुद का ही होना चाहिए l मृत्यु कभी भी हर किसी की ,किसी भी  पल निश्चित है l  इसे तुम उस समय बोझ के रूप में लेकर जाओ… तो क्या ठीक होगा ?  आडम्बर केवल इसी दुनिया में जिया जा सकता है l निस्पृह जीवन का अवसर क्या पता…मिले न मिले, इसलिए यही अवसर है कि जीवन की मूल जटिलताओं को सहज कर लो और खुली मुट्ठी करके निकल लो… या खुद को तैयार रखो l”

जीवन की जटिलता उतनी ही जटिल है जितनी सुई के छेद से खुद को निकालना, ऐसी  जटिलताओं को सहज करने का मार्ग बड़ा ही सरल है अपने को छोटा कर लो…तभी तो निकल पाओगे जटिलता के बारीक छेद से ..यानी अपने को छोटा करने का अर्थ है कि बाहरी लगेज  अहंकार स्वार्थ  बनावटीपन बड़े होने का ढोंग  निकाल कर फेंक दो तब तुममें अपने आप संतुलन ,स्थिति प्रज्ञता का अहसास होने लगेगा,ऐसा एक बार करके  तो  देखो l

शिक्षा ज्ञान का प्रकाश फैलाती है यह पशुता से पृथक होने का माध्यम है l व्यावहारिक ज्ञान व्यक्तित्व का विकास करती है किन्तु वही ज्ञान हमारा शत्रु तब बन जाता है जब हम अक्ल  की अजीर्णता के शिकार हो शातिर हो जाते हैं l  जिस प्रकार दूध अमृत है किन्तु खटास की एक बूँद उसे जहर बना देती है वही खटास नकारात्मक सोच के रूप में  हमारे ज्ञान भंडार को नकारात्मक रास्ते में ले जाकर शातिर बना देती है और हम अपनी सुरक्षा हेतु प्राप्त अस्त्र से निरीह निर्दोषों पर वार कर अपना उल्लू सीधा करते हैं l         

       गुलामी चाहे लत की हो या किसी के हावी होने की दोनों ही मन को कमजोर करती है l  मन का  मिथ्या लगेज मनोविकार होती है विकार के रूप में जब उसे  बाहर फेका जायेगा  तब वही स्थिति प्रज्ञता हमारे भीतर ऐसे ज्ञान की उर्जा प्रज्वलित कर देगी जिससे  हमारे स्वयं के निर्णय  ही हमारी सारी जटिलताओं का समाधान कर देंगे l यही आत्मविश्वास हमें गुलामी से मुक्ति का अहसास  करा देता है l जीवन की बैलेंस शीट बनाकर क्या खोया पाया, क्या अच्छा किया बुरा किया l मन की ग्रंथियां आजीवन आत्मग्लानि  का अहसास देकर  मर्मान्तक पीड़ा देती  रहती हैं ऐसी बहुत सी ग्रंथियां पलती रहती हैं l लगेज के रहते हुए शरीर में अनावश्यक ग्रंथि कैन्सर बनकर जीवन को और भी  भयानक बना देती है l

     हमें उन मनोविकारों को चिन्हित करना होता है जिनके होने से मन में पड़ी हुई विषय वस्तुएं मष्तिष्क का भार बढाती हैं ,अहंकार मिथ्या भ्रम बढाकर श्रेष्ठता का अहसास  देती है जिससे ज्ञान संवेदना बाधित होकर आगे बढ़ने की भूख मर जाती है  अपनों के बीच ,दूरियां बढ़ती हैं  और झूठ मूठ का भ्रम  शहतूत के कीड़े की भाँति रेशम के धागे का किला बनाकर   भीतर ही भीतर मार डालता है और अज्ञानता ज्ञान की पराकाष्ठा का भ्रम पैदा करके शातिर बनाकर पतन के गर्त में ढकेल देता है  I बेशक, व्यक्तित्व के लिए  स्वाभिमान एक आवश्यक तत्व है परन्तु इसकी अधिक खुराक अहंकारी बना देता है l

     जीवन रक्षक  आक्सीजन के लिए हम घर की खिडकियों को खुला रखते हैं l हमारी सोच की खिड़कियाँ भी खुली रहें नित नए आइडिया दूसरों से भी आते रहे,हम एडाप्टिव (स्वीकार कारी ) बने जिससे जीवन शैली में अच्छे बदलाव आते रहें और खुशी के झोंके मन को गुदगुदाते रहें l  जिस पल से  हमने  सोच लिया कि हमें यह आता है हमें नहीं सीखनी ,उसी पल से  सोच की खिडकी बंद हो जाती है आगे की आने वाली सीख पद्धति स्वयमेव बंद हो जाती है और तभी से हम वंचित हो जाते हैं अपनी बदलाव पद्धति से ,ख़ुशी से और  अपनों से भी क्यों कि जैसे  रुका हुआ पानी गन्दा हो जाता है उसे कोई पसंद नही करता वैसे ही रुके विचारो का व्यक्ति कठोर जड़ हो जाता है l विनम्रता और सकारात्मकता तो जैसे खो ही जाती है  वही से  दुख और निराशा की श्रृंखलाएं शुरू होती हैं l   

     जिन्दा रहने का लक्षण प्रकट होता रहे, इसलिए शरीर की सारी संवेदनाएँ ज्ञानेन्द्रियों  को खुला रखतीं  हैं l  यह ईश्वर ने हमारे शरीर में व्यवस्था दी है जिससे अपने आप सभी बाधक विकार नष्ट हो जाते हैं किन्तु जैसे ही शरीर का तंत्र अपनों से संचार में  बिछड़ा ,तभी शरीर  की व्याधियां शुरू हो जाती हैं यह सन्देश समाज में भी पहुचना आवश्यक है कि बड़ी से बड़ी  समस्या के समाधान के लिए स्वस्थ वार्तालाप का द्वार भी  खुला रखा जाना चाहिए  l

      छोटा होने का अहसास यानी हीन  भावना या बड़ा होने का अहसास यानि अहंकार यह लगेज  ही  तो है जो व्यवधान डालता है हमारी जीवन शैली को सफल करने में …तो मनोविकार के लगेज को कम कर लो जीवन का बोझ कम हो जायेगा  क्यों कि सदैव ही यात्री ही अपने सामान का जिम्मेदार होता है l स्वस्थ वार्तालाप जीवन में बड़ी से बड़ी जटिलताओं  का समाधान कर देता है बशर्ते आपने अपना लगेज किनारे रख दिया हो l

कतार में बुढापा ..

असंभव स्वयं में संभव है …