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आग हूँ मै..


मैं दहक रहा अंगारों मे,
शोषित के सुलगते नारों मे,
मेरी आग छिपी है भूखों मे,
गुस्साए हर बेरोजगारों मे l

आश लगाए पीड़ित के,
भीतर की धधकती आग हूँ मैं,
संगीत से निकली वह धारा,
सुर सधे जहाँ, वो राग हूँ मैं l

मैं क्रोध हूं उस प्रलयंकर का,
जिससे मिथ्या अभिमान डरे,
मैं फूंक जगा दूँ मुर्दो को जो,
नव जीवन निर्माण करे l

ह्रदय मे हूँ धड़कन बनकर,
मैं जिन्दा हूँ दावानल मे,
चिता भी हूँ चिन्ता बनकर,
जलता भी हूं दीपक लौ मे l

मैं दीपक लौ अंधड़ एवं ,
अन्धकार से लड़ता हू ,
इच्छा मे रख कर शक्ति प्रबल,
अपने दायित्व मे अड़ता हूँ l

मेरी भूमिका हेय नहीं ,
मैं दीप्त भुवन को करता हूँ,
हर मजहब मे मेरी मर्जी ,
ऊर्जान्वित सबको करता हूँ l

गौ माता..

लाशों का दर्द