कसैली हुई है बाहर की हवा ,
फिर भी वो नशे में धुत्त l
नशाखोरी का आलम देखिये,
जहर फैलाए , बैठे हैं चुप l
दबाकर ,दिल की सरगोसियाँ,
गंदगी में मुलम्मा चढ़ाए हैं l
एक कौम है “आका का थूक”
गिरते ही बाहें बढाए हैं l
वो अफीमची सा झूम झूम कर,
बयाँ करते लब्बो लुआब ,
थप्पड़ों की चोट पर करते,
मुसल सल आदाब-आदाब l