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आज की हवा

कसैली हुई है बाहर की हवा ,

फिर भी वो नशे में धुत्त l

नशाखोरी का आलम देखिये,

जहर  फैलाए , बैठे हैं  चुप l

दबाकर ,दिल की सरगोसियाँ,

गंदगी में मुलम्मा  चढ़ाए  हैं l

एक कौम है “आका  का थूक”

गिरते ही बाहें  बढाए   हैं l

वो  अफीमची सा झूम झूम कर,

बयाँ करते लब्बो लुआब ,

थप्पड़ों की चोट पर करते,

मुसल सल आदाब-आदाब l

आक्सीजन बिन कोई मरा नहीं

बेचत बेचत मैं चला