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कतार में बुढापा ..

बुढ़ापा एक वह उम्र का पड़ाव है जिसमे व्यक्ति शक्तिहीन,जर्जर और सारी बीमारियों का घर हो चुका होता है,यूँ तो लोग यही कहते हैं कि बुढ़ापा सोच ही मनोवैज्ञानिक है किन्तु सच से दूर न भागें तो दुसरे अर्थ में इसे “मृत्यु की प्रतीक्षा” कहा जा सकता है l सचमुच इनकी  गारंटी कल की ख़तम हो चुकी होती है ,ये खुदा की नेमत बख्सी हुई जिन्दगी पार कर रहे होते हैं जिसके लिए वे ईश्वर को हर पल का आभार जताते हैं l वे जिन्दगी की हर प्रकार की टांय-टांय को झेलते हुए  अपने परिवार का असमय परोक्ष जहर पीकर भी जिन्दा रहते हैं l वे जिन्दगी की पूरी यातना को झेलते हुए  खुद हारकर परिवार की जीत पर जीवन की खुशी मानते हैं l इसलिए ये आज भी खुद को धरोहर मानते हैं ,भले ही आज की पीढी इस बात को गंभीरता से माने या न माने  l  

     बैंकों में नवम्बर माह पेंशनरों के जिन्दा रहने का प्रमाणपत्र जमा करने का समय होता है l इस प्रक्रिया के लिए बैंक भी अपना वही पारंपरिक रवैया अपनाती है इसलिए  कतार में खड़े करके इस  पावन कार्य को करती है  l आप जब तक युवा हैं , प्रतियोगिताओं में खुशी-खुशी भाग ले सकते हैं किन्तु वृद्धावस्था में कतार बद्ध होकर अनुशासित होकर घंटों खड़े नही रह सकते हैं ,उस पर बैंक का वाच मैन बीच बीच में ठीक से खड़े होने को हड़का जाता है l वृद्ध खड़े खड़े चक्कर खा कर गिर भी सकते हैं शुगर और बी.पी.के मरीज भी इनमे जादा होते हैं ,इन्हें प्यास भी लगती है और पेशाब भी l इनमे साइटिका और ह्रदय के मरीज भी होते हैं जो देर तक खड़े नही रह सकते l

     बैंक भी इन दिनों बदलाव के दम भर रहे हैं किन्तु उसमे मशीनीकरण में वृद्धि और नैतिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है l बैंकों में भी हम जैसे इंसान ही काम करते हैं किन्तु क्या वे सोचते होंगे कि उन वृद्धों की  जगह पर उनके पिता या दादाजी खड़े होंगे तो उन्हें कैसा लगेगा l खैर ..इस उपभोक्तावादी युग में तो बच्चों को नैतिक शिक्षा के आभाष पर सोचना ही हमारी गलती होगी l मगर अब कारर्पोरेट संस्थाओं में भावनात्मक सोच का काफी प्रचलन है इसलिए वृद्धों के लिए व्हील चेयर, कंटीन,जल आदि की सुविधा जैसी व्यवस्था पर  बैंकों को  भी सोचना होगा l

      कुछ बैंक के संवेदनशील लोग  नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बैंक में हर पेंशनर से प्रमाण पत्र लेकर एक सेब फल देकर सधन्यवाद बिदा करते थे , उन वृद्धजनों  के संतुष्टि भाव और सहज खुशी  पाकर बैंकर का  मन खुश  हो जाता था ,बैंक अपनी छबि सुंदर करने के लिए भी  ग्राहक सेवा में अलंकार की भांति यह पर्व मनाता था l उन दिनो स्टाफ के बीच यह बात कहना जरूरी होता था कि “इन की कल आने की कोई गारंटी नही है इसलिए इनके काम आज ही निबटाना है” l इसी सकारात्मक सोच पर ही बैंक में इंडक्शन कोर्ष,परिवर्तन,उड़ान ,सिटीजन एसबीआई,और अन्य ग्राहक सेवा के कार्यक्रमों ने बैंक का दृष्टिकोण ही बदल दिया था l जो अब लाभदायकता तक ही सीमित होकर अपना पिछला कलेवर भूल चुकी है l

     आज तकनीकी युग में हमें बैंक से अपेक्षाए बढ़ गयीं हैं ,कोर सिस्टम पूरी तरह से अपने शानदार प्रभाव में है ,किन्तु हम आज भी लाइन लगा कर जीवित रहने का प्रमाण पत्र संग्रह करते हैं l  कियोस्क बैंक बहुतायत मात्रा में खुले,साथ ही सभी के आधार कार्ड बनकर खातों से जोड़े भी जा चुके हैं  l अब सभी खातों में किसी भी राशि का आहरण बायो मेट्रिक माध्यम से करने मात्र से जीवित रहने का प्रमाण साबित हो सकेगा,इस प्रक्रिया में बैंक को अपना सिस्टम अपडेट कर लेना चाहिए जिसमे बैंक की भीड़ भी ख़तम ,बुजुर्गों की असुविधा भी ख़तम l यानी किसी भी स्थान से कियोस्क द्वारा या बैंक द्वारा बायो मेट्रिक माध्यम से उनकी हाजिरी लग जावे तो टंटा ख़तम जीवित प्रमाण पत्र के संग्रह का l

दूसरा तरीका यह है कि बैंक में आने वाला बुजुर्ग केवल हाल में रखी कुर्सियों में आराम से बैठे ,उन्हें एक व्यक्ति फ़ार्म भरने को दे,और वही उसकी फोटो मिलान कर फार्म संग्रह कर लेवे बाद में अपने सिस्टम में फीड कर लेवे l इस कार्य में बैंक को उस वृद्ध की सहायता करने की तत्परता  दिखाना पड़ेगा,जिसके लिए ग्राहक मित्र बड़े काउंटर के साथ प्रदर्शित होते हैं l इसके विपरीत होता यह है कि भीतर ब्रह्मा जी की भांति बैठा कर्मचारी आराम से काम करते हुए घंटों बुजुर्गों को लाइन में खड़े खड़े अपनी पारी का इन्तजार करते हुए ,आयुजनित समस्त तकलीफों को बरदास्त करना होता है l यही प्रक्रिया बैंक की अमानवीय है जो अपने को बड़ी शान से  सेवा प्रदाता की भूमिका में समर्पित बताता है l

     इन दिनों तो सामान्य रूप से  यह देखाजाता है कि वृद्धावस्था पेंशन और कर्मचारी पेंशन के जीवित रहने के प्रमाण पत्रों के संग्रह सरकारी संस्थाएं एवं बैंक के तरीके एक से हैं l एक खिडकी सिनेमा हाल की तरह  बाहर की ओर खुली होती है जिसमे  बुजुर्ग के आयु ,अवस्था पर कोई सरोकार बैंक या सरकारी संस्था  को नही रहता l बाहर धूप ,वर्षा ,प्यास पेशाब ,रोग जनित दर्द,भीड़ के दबाव पर संघर्ष , तमाम असुविधाएं पशुवत व्यवहार सा प्रतीत होता है ,जो मानवता को लज्जित करने के लिए पर्याप्त है  l

      आज बैंक  को जबाबदेही के साथ इन सामाजिक बैंकिंग उत्तरदायित्व का भी निर्वाह करना होगा क्यों कि बैंक अर्थ व्यवस्था का आधार तो है ही किन्तु  लोगों के जमा पूंजी पर ही उसका अस्तित्व कायम है l कही ऐसा तो नही  कि वैश्विक प्रतियोगिता की दौड़ में विश्व का सबसे बड़ा बैंक का अपना अस्तित्व ही खोता जा रहा हो l

चौपट राजा

अहंकार एक बोझ