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कलम का जख्म

मैं कलम हूँ
आजकल मुझ पर पहरा है
लिखना है बहुत,
मन का जख्म
गहरा है l…
मैं सोच को कुरेदती हुँ
बाहर के हालात से
आत्मा को छेदती हूँ
लिखते ही
मैं रो पडूं जब
चौथे स्तम्भ पर
सलाखों का पहरा है
लिखना है बहुत
मन का जख्म
गहरा है l…

कुछ लोग आइना से डरकर
बुलडोजर मे ढूंढते
तबाही के मंजर,
जिन्हे आज जोखिम
तो कल सुनहरा है,
लिखना है बहुत
मन का जख्म
गहरा है l…
महगाई बेरोजगारी
व्यवस्था की लाचारी
की बात बेमानी है
लम्पटों के बीच एक
डंका पति का
बहुरूपिया चेहरा है,
लिखना है बहुत
मन का जख्म
गहरा है l…
कोई घर आकर
दरवाजे से उठा ले
सौंप कर भीड़ को
माव लिंचिंग न कर दे
कलमकारों मे डर
बहुत ही गहरा है,
लिखना है बहुत
मन का जख्म
गहरा है l…
कब कहाँ कौन लील ले
धर्म के मुहाने मे लाकर
आजकल आदमी
दिमाग़ से है पैदल और
कान से बहरा है,
लिखना है बहुत
मन का जख्म
गहरा है l…
अब तो खेत के बजाय
खोदते हैं देश को
मंदिर मस्जिद की तान पर

बोते नफरत के बीज को
बाबा के वेश पर
क्या पता,
गुनहगार ठहरा है,
लिखना है बहुत
मन का जख्म
गहरा है l…
मैं कलम हूँ एक सोच हूँ
रुकना नहीं मैं जानती
प्रलय मुझको रोक ले
ऐसा नहीं मैं मानती
लोकतंत्र है बेड़ियों पर
मुश्किलों का पहरा है
लिखना तो है बहुत,
मन का जख्म
गहरा है l…लिखना तो है बहुत
मन का जख्म गहरा है

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