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कुत्ता

आदमी ने गाली में
कुत्ता कहा
कुत्तों ने सुना,
फिर भी…
बुरा मानकर,
कोई आगे न बढ़ा l
किसी के अहम् का पारा,
ऊपर न चढ़ा l
ये नस्ल झूठे अहम् को,
पहचानती है l
भावना में भाषा का
अपना धरम,
समर्पण मानती है l
आदमी के फितरत,
से ये बिलकुल अलग हैं l
दुनिया के सो जाने पर भी,
ये रहते सजग हैं l
इन्हे शिकवा शिकायत,
किसी से नहीं होती l
इनके मरने से,
दुनिया नहीं रोती l
मालिक के संजीदगी में
आँखों के आंसू और
पूँछ हिलाकर
साथ जताते है l
मूंक होकर भी
ह्रदय को छूकर
अपना पन बताते हैं l
दुलार दुत्कार के बदले
यह कुछ भी न मागे हैं l
ये आदमी नहीं,कुत्ता होकर ही
स्वामिभक्ति में रहते
सदा आगे हैं l

जियें वर्तमान में