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जियें वर्तमान में

व्यथा जब अभिव्यक्ति होती
काव्य की मन्दाकिनी,
हर ह्रदय में शूल बनकर
शोर करती है घनी l
वाह्य आवरण शांत दिखता
उर अंधड़ो से ध्वस्त है,
हर आदमी मन के व्यथा की
अमरता में व्यस्त है l
ये व्यस्तता ही दर्द बनकर
सुख के क्षण खा जायेगा,
जीवन की बैलेंस शीट में
शून्य ही रह जायेगा l
अतः काल का आदेश समझें
बढ़ें पग सोपान में,
असहज पलों को भूल कर
जीवन जियें वर्तमान में l

मै भ्रष्टाचार हूँ

कुत्ता