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ठहर जा …चुनाव है

खुद के पैर काटकर
खुश नहीं होता कोई ,
यूँ ही किसी गरीब का
पैर क्यूँ धोता कोई l

कुछ तो बात होगी
रौंदा गया अपना चमन,
जहर कुएँ मे घोलकर
बतला रहे अमने वतन l

दरकते दिलों मे दर्द के
फलसफे जब भी भरोगे,
खून के आंसू दिखाकर,
दिलों के टुकड़े करोगे l

फ़िल्मी कहानी बन रही
इतिहास की अब लाइने,
देखते ही टूटते हैं
स्वाभिमानी आईने l

तब लहू-प्यासी भीड़ थी
मुल्क था डर के हवाले,
कुछ सियासी पैतरों ने
जज़्बात कब्रों से निकालेl

रंग दें बसंती चोला जज़्बा
आज हुआ है भगवा,
खूटी मे संविधान टांगकर
लोकतंत्र है अग़वा l

भेड़ों की रक्षा भेड़ियों से
अब ये कैसा बुनाव हैँ,
जमीर को कर दे रेहन
ठहर जा,अभी…चुनाव हैँ l

दिखावा ..

मैं वहां हूँ …