डालर पंहुचा आसमान मा रुपिया गिर गै नीचे , नीक दिनन के आस मा हम ता रहि गयन सबसे पीछे l का जानी हम डालर सालर हम किसान के बच्चा , राहा, खेत निदाई जानी बात करी खर-सच्चा l राहा मा जब मूस चिरैया सलगे दाना खाइन . हारे जिउ,हींसा है उनखर मन का बोध लगाई l देश मा अईसन मुसबन के भीड़ बहुत है छाई , घुइंस कि नाई मोट मोट हैं खात हें दूध मलाई l उइं मोटगर मुसबन के भईया कईसन नाम गिनाई , या सांपनाथ वा नागनाथ सब ता हैं दुखदायी l पसुरी धांधर भीतर घुस गै तर भूम्भुर जब सुलगै , फूट पसीना अन्न बना तब सूखा बाढ़ मा घुल गै l तबहूँ मुसबा कुतुर कुतुर के लबरी झूठ बतानी , आपन पिंसिन वेतन खीतिर खूब करत मनमानी रुपियन के खीतिर या दाना हाट मा जईसे आबा , दोखी डालर रुपिया दाबे आसमान का भागा करम पीट के बईठ गयन है जबसे गिरी रुपैया , महगाई का भुगतैं के खातिर हमिन रहि गयन भईया l ध्यान बटा के ढेर बहाना कब तक हमी बिसरईहा , हमरे दिन तऊ ओइन रहिहैं केतनेऊ बात बतईहा l समझ म आई चाल ढाल कर केतनओ जुमले बाजी, को नापै मुसबन के छाती जब बदी हो रोटी भाजी l धई कानून का खीसा मा बोटन के खेती करिहैं , बोटी-बोटी करके हमरी आपन झोरी भरिहैं |
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