तुम्हारी तीखी त्योरियां …
जूतों की चरचराहट
खांसने व छींकने पर
बेअदबी हो जाने का डर…
हल बक्खर से अपना खेत
जोतने से पहले
भूख से बिल बिलाते बच्चों के
पेट में दाना डालने
और बीमार होने से पहले
डर से तुम्हे ताकना…
तुम्हारे चेहरे में तनी भौहें
गालियाँ ,तरेरी हुई आँखें
कब चैन से सोया था
याद ही नही…
तुमने बुखार से तपती
देंह को धकियाकर
बरसती अषाढ़ में
गुलाम होने का
अहसास कराया था …
दूधमुहे बच्चे की माँ
उसे पीठ पर बांधे
मुझे बचाते ,पूरा खेत
बिन बैल के जोता था …
याद है तुम्हारी त्योरियां
तनती थी लोरियां गाने से
बच्चों की किलकारियों से
आज भी मेरे गाँव में दूल्हा
घोड़ी में बैठने से डरता है
स्कूल का बच्चा अक्सर
पानी पीने से मनाही पर
कुँए में गिरकर मरता है