दिया हूँ मैं, जल रहा
जलना मेरी फितरत रही l
लड़ रहा नित अंधड़ों से,
अँधेरों की नफरत सही l
समंदर की हिलोरें,
जब लीलती हैँ नाव को l
मेरी किरणे आश बन,
निश्फल करें हर दांव को l
“तमसो माँ ज्योतिर्गमय”
मैं वेद गुंजित सार हूँ l
हूँ दीप तम से जूझता,
हर प्रेरणा का द्वार हूँ l
निर्बल अकेला ही सही,
कर्त्तव्य पथ में चल रहा l
हूँ समर्पित समर में,
मैं निरंतर जल रहा l
बुझने के उपरांत कोई ,
तो मुझे लिखता दिखेगा l
मेरे समर्पण की कहानी,
समय तब खुद ही लिखेगा l
-बनवारीलाल राय