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– दुश्मनी

क गाँव में रामधन और रामसखा पडोसी थे दोनों पेशे से किसान थे और एक दुसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते थे अर्थात गजब का बैर था दोनों में l पड़ोसी होने के कारण खास ख़बरें एक दूसरे की रखते थे l बहुत पुरानी बात है जब रामसखा के पिता कामता और रामधन के पिता श्रीनाथ आपस में पक्के मित्र होते थे,दोनों एक दुसरे पर मर मिटना जानते थे फिर एक दिन खेतों की बंदोबस्ती नाप जोख हुई और पटवारी की जरीब खेतों में घुसी चौहद्दियां नापकर फैसला सुना दिया,कि श्रीनाथ के खेत में आधा बीघा जमीन कामता की है l तभी दोनों ने पटवारी से कहा कि माई बाप हम दोनों अपने अपने खेत बापदादा पुरखों  के जमाने से जोत बो रहे हैं l अमीन पटवारी ने एक न सुनी श्रीनाथ के खेत से आधा बीघा नापकर पत्थर गाड कर चले गए l दोनों दोस्त अपने जीते जी उस पत्थर को देखा तक नही l बस,अपनी मस्ती में खोये एक दूसरे की मदद करते  हुए  सिधार गए l

       दोनों मित्रों के पुत्र भी पिता की राह पर कुछ समय चलते रहे l गाँव में एक बैठक पर किसी मुक़दमे की चर्चा के दौरान कामता और श्रीनाथ के खेत पैमाइस की चर्चा निकली जिसमे रामसखा को आधे बीघे की आमद होनी थी तभी रामसखा की घरवाली ने पति को ताने मारना शुरू किया कि अपनी जायदाद की खबर नहीं, दोस्ती निभाने में लगे हो l क्यों नहीं अपनी आधी बीघा खेत की जमीन वापस ले लेते,बड़े मर्द बने फिरते हो  l उधर रोज सुन सुन कर रामसखा के कान पक गए पत्नी के ताने से,आखिर पत्थर भी करवट ले ही लेता है बार बार के विषैले तानों से और वह भी जब कोई मर्दानगी पर चोट करे तो मुनासिब है कि कोई मर्द तब अपने औकात में आ ही जाता है l रामसखा अपने पिता कामता के मित्रतापूर्ण आचरण को तिलांजलि देकर रामधन से भिड़ गया और अपनी बाड़ पुराने गड़े पत्थर की सीमा तक बढ़ाकर खीच ली, यही दोनों के दुश्मनी का कारण बन गया l

       आधी बीघा जमीन ताकत के बल पर स्वाभाव से जड़,रामसखा ने कब्जे में ले लिया l बचपन का प्यार,दोस्ती, पिता की सोच सब बेकार साबित हो गए l रामधन को जमीन जाने से जादा मलाल उसे बचपन के  ममता ,प्रेम और दोस्ती खतम होने का था l बुरा तो तब लगा जब कब्ज़ा करने का खराब तरीका अजमाते हुए पूरी ताकत से झगड़ कर खेत पर बाड़ लगा दिया l अब वह पड़ोसी सा लगने लगा पहले के दिन भी याद आते रहते जब “दोनों प्याज काटकर रोटी बांटकर” खाते थे l

       सुबह रामधन  हल बैल बक्खर लेकर अपने खेत निकल जाता l थोड़ी दूर पर नजर दौड़ाते हुए कनखियों से रामसखा को भी देखता और काम पर लग जाता l जीवित होने के बावजूद , दोनों के बीच वार्तालाप की मौत हो चुकी थी l खेत में काम करते करते रामसखा थककर चूर दोपहरी को घर चला जाता किन्तु उनके जानवर की परवाह रामधन जरूर करता और अपने बैलों को पानी दिखाते वक्त रामसखा के बैलों को भी पानी पिला देता था l

    गाँव में दोनों की दुश्मनी दूर दूर तक प्रसिद्ध थी दोनों के बैल गाहे बगाहे जब भी खुले होते तो खेत का रुख कर लेते जिससे झगडे बढ़ते रहते l घरेलू मसलों का तो अंत ही नहीं था घर की किचकिच दोनों के बीच कुछ न कुछ कारणों से बनी रहती थी कभी कभी गाँव मोहल्ले के लोग भी चुहल बाजी करते हुए दोनों को भिड़ा देते और मजे लेते l

       रामधन  की  घरवाली ने  घर सम्हाल लिया था और खेत खलिहान खाद बीज  पैसे के आगम ,खर्च पर भी उसने जिम्मा उठा लिया था, तब रामधन अपने भाग्य पर ईश्वर की कृपा मान कर खुश हो लेता था पर उनकी अपनी कोई संतान नही होने का दुःख चुभता रहता l रामधन की पत्नी वात्सल्य कोष से ओत प्रोत होकर चुपके चुपके रामसखा के बच्चों पर स्नेह की परोक्ष वर्षा करती  रहती थी l

        उधर रामसखा की बीमारी के चलते खेती पिछड़ गयी और इस फसल में बमुश्किल काम चलाऊ ही पैदावार हो पायी ,बीमारी ने रामसखा की पत्नी को भी नही छोड़ा घर में दोनों बीमार थे ,खाने की समस्या रोज ही बनी रहती ,बीमारी के कारण भूख भी लगनी बंद हो गयी मानो  गरीबी ने कुंडली मारकर डेरा डाल लिया l खेत खलिहान की अब कौन करे,जीवन जीने की चिंता सताने लगी l

     खिडकी से झाँक कर रामधन ने जायजा लिया और अपनी पत्नी से कहा कि रामसखा का दुःख नहीं देखा जाता l उसकी पत्नी अक्सर रोटी बना कर स्वादिष्ट चटनी के साथ बच्चों को चुपके से दे दिया करती  जिससे बच्चे ख़ुशी से खेलते रहते,इसीसे स्वयं को बहलाकर ,उसके मातृत्व की तुष्टि हो जाती l रोटी मिलने की बात पता चलते ही पडोसी रामसखा ने  रामधन को लगभग डांटते स्वर में कहा कि मेरे बच्चों को कुछ भी खाने को न दें और कोई परवाह करने की जरूरत नहीं है  l ऐसा कहकर उसने झूठे दंभ की तुष्टि करनी चाही परंतु झूठ तो झूठ ही होता है l

      रात भर रामसखा बिस्तर पर लेटे लेटे यही सोचता रहा कि स्वयं और पत्नी की बीमारी दिन प्रति दिन बढती जा रही है पैसों का कोई प्रबंध नही है कदाचित अब क्या वह अकेला पड़ गया l पत्नी ने सुझाव दिया कि अपने बचपन के मित्र रामधन से बात करे,शायद कोई रास्ता निकले l मेरी तो मति मारी गयी थी जो तुम्हे आधी बीघा जमीन के लिए झगडे को उकसाया था ,कितने अच्छे थे वो दिन जब एक परिवार की भांति हम और रामधन परिवार के साथ सूखी रोटी  में स्वाद आता था l व्यक्ति भूखा हो तो उसका स्वाभिमान भी अपना रास्ता बदल कर रोटी की ताक में नियम शिथिल कर देता है l आखिर मन में हावी मिथ्या अभिमान ने  पत्नी के परामर्श को अमल  करने से रोक  दिया l

        एक दिन पोस्टमैन आकर रामसखा को मनीआर्डर के दस हजार रुपये लाकर दिया जिसमे उसके किसी पुराने दोस्त ने अपना कर्ज वापस करने की बात लिखा था l रामसखा दिमाग में खूब जोर डाला ऐसा कोई दोस्त नहीं याद रहा, जिसे कभी पैसों की मदद की हो ,खैर… इन दिनों पैसों की बहुत जरूरत थी सोचकर वह बच्चों को अन्य पड़ोसियों के हवाले करके पत्नी को लेकर शहर की बड़ी अस्पताल ले जाकर पत्नी और अपनी चिकित्सा में लीन हो गया,ईश्वर के भरोसे दोनों की चिकित्सा पूरी हो गयी जिसका कुल खर्च डाक्टरों ने डेढ़ लाख रुपये बताया l हिसाब सुनते ही पैरों के नीचे से धरती खिसक गयी कि इतने सारे पैसे कहाँ से चुकाएगा ,किन्तु वहां  के  लेखा विभाग से पता चला कि वह भी चुकता हो गया l किसने कब चुकाया कुछ जानकारी नही मिल सकी l चिकित्सा पूरी हो जाने पर रामसखा पत्नी सहित गाँव पहुचकर बच्चों को सकुशल पाया l उन्हें अपने बच्चों से पता चला कि उनकी देख रेख व खाना खुराक का ध्यान रामधन काकी बड़े लाड प्यार से रखती थी,पड़ोसी तो अगले ही दिन पराई संतान का जिम्मा लेने से मुह मोड़ चुके थे l अपने बच्चों के साथ पुनःरामसखा बड़ी जिम्मेदारी से खेती बाडी में ध्यान लगाना शुरू किया l

        एक दिन गाँव के सरपंच ने सूचना भिजवाई कि रामधन का खेत गिरवी है जल्दी मुक्त करा लेवे नही तो किसी भी दिन नीलामी में हाथ से निकल जावेगी ,यह जानकारी रामसखा को मिली तो उसके कलेजे में ठण्डक की अनुभूति हुई ,दुश्मनी का अहसास भावुकता की सारी ग्रंथियों को शून्य कर दिया था l उसने अपने बुरे समय को याद किया ,जब कोई उसकी सहायता करना तो दूर, द्वार में फटकता भी नही था l भला हो उस व्यक्ति का जो बुरे समय पर मनीआर्डर भेज कर अनजाने में मेरा सहयोगी बन गया था l

          आये दिन बच्चों के द्वारा , रामधन काकी की प्रशंसा की बातें हो ही जातीं, माँ ने गंभीरता से इसकी गहराई में जाकर और भी बातें करते करते जानकारी हासिल किया, कि बापू की अस्पताल में भरती के समय ही काका ने खेत गिरवी रखा था,जिसकी चर्चा बच्चों के सो जाने के बाद ही दोनों करते थे जिसे उन्होंने बाल सुलभ तरीके से माता पिता को बताया कि रामधन काका और काकी आप लोगों की बहुत फिकर करते हैं और हम सबको बहुत प्यार भी करते हैं  l

          इतना सब अपने बच्चों से ही सुनकर मानो काठ मार गया हो, सब कुछ साफ़ साफ़ समझ में आने लगा कि वह मनीआर्डर और अस्पताल में भारी खर्च की रकम किसने जमा की थी ,हम जिसको दुश्मन मान रहे थे वही हमारा सरपरस्त  निकला l दुश्मन के  संकट काल में  ,अपनी पहिचान छिपा कर, खुद का खेत गिरवी रख कर मदद करने जैसा कोई उदाहरण संसार में नहीं मिला l आभार और शर्मिंदगी का सैलाब सिर के ऊपर से निकल कर पूरे अस्तित्व को जमींदोज कर रहा था l मेरे न रहने पर मेरे ही जानवरों को प्यास से तड़पते देख नहीं सकता था, मेरी हर तकलीफों को गौर से भांप लेने की क्षमता उसमे थी, मेरे बच्चों को वह कभी पराया समझा ही नही,आज हमारे जीवनरक्षा का स्तम्भ बनकर जो खड़ा है मेरी फिकर करता है ,वह हमारा दुश्मन कैसे हो सकता है l  क्या मेरे प्रायश्चित करने की कोई गुन्जाईस है,मुख भी दिखाने लायक नहीं बचा मुझमे,आधा बीघा भूमि को लेने के लिए मैंने मानवता को भी शर्मसार कर दिया l रात में सो नही सका और घर से निकल पड़ा l

       चिड़ियों की चहचहाहट के साथ सुबह हुई रामधन खेत जाने को दरवाजा खोला तो स्तब्ध रह गया l जब कृतज्ञता और अपराधबोध का सम्मिश्रण मस्तिष्क में बवंडर मचा रहा हो तो प्रायश्चित के लिए कुछ भी नही सूझता l

रामसखा  दरवाजे के रास्ते में लेटा हुआ रोकर अपनी अक्षम्य गलतियों के माफ़ी की निःशब्द याचना कर रहा था l रामधन ने रामसखा को उठा कर गले लगाया और बड़ी देर  तक दोनों की  आँखों से अविरल धारा बहती रही जिसमे बिना कुछ कहे सुने , सभी शिकवे शिकायत धुल गए  l प्रायश्चित और पछतावा  के आंसुओं ने दुश्मनी की आग को सिचित कर राख में बदल दिया l

        रामधन की पिछले वर्ष अच्छी फसल हुई थी जिसे सरकार को बेचा था,उसके पैसों का चेक आज आगया जिससे खेत गिरवी का पैसा चुकता होने का इंतजाम हो गया l रामसखा ने बड़ी शर्मिंदगी के साथ जाकर अपनी गड़े हुए पत्थर की सीमा तक बने बाड़ को हमेशा के लिए हटा दिया l अब रामधन और उसकी पत्नी को निःसंतान होने का कोई दुःख नही रहा l रामधन दंपत्ति अपने मित्र के बच्चों पर ही अपना भविष्य खोजते हुए पूरे मन से खेती बाडी में मन लगाकर अपने  जीवन को धन्य मान रहे हैं l रामसखा को समझ में आ गया कि जीवन का बड़ा हिस्सा बेवजह अकारथ हो गया, दुश्मनी की काट त्याग, बलिदान, स्नेह,ममता की पराकाष्ठा ही है, जिसकी संवेदना का आभाष एक तरफा न होकर दोनों ओर से ही होना चाहिए  l                         

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खजाने का नाग

मै लौटूंगा माँ …