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न्याय दंश – 

यूँ तो हमारे समाज सुधारक यानी नेता ,समाज के चौधरी ,वकील ही न्याय के बड़े पहरेदार  होते हैं किन्तु उनके पाले में समाज सुरक्षा की जिम्मेदारी के अवसर आते ही,मानवीय मूल्यों को तिलांजलि देकर लिप्सा भाव से भूमिका का निर्वाह करते देखे गए है, सिद्धांततः जैसा बोलते दिखते हैं वैसा निष्ठां पूर्वक दायित्वों के प्रति अडिग हो नहीं पाते l आदमी समाज में रहकर जिस सुरक्षा की गारंटी पाकर जिन्दा रहता है, वक्त आने पर उसी समाज के लोग यह सोच कर कन्नी काट कर किनारे हो लेते हैं कि सच बोलकर किसी पक्ष को नाराज क्यों करें l तब हमारी सामजिक व्यवस्था का अंतिम पहरुआ “पुलिस” की भूमिका का उदय होता है जिसकी भूमिका शांति बनाये रखने से शुरू होकर  वर्तमान समाज का एक भयानक चेहरा निर्मित करना होता है l जिसका चित्रण आगे मिलता है l

       एक गाँव में एक खुशहाल परिवार होता था जिसमे रामगरीब, उसकी पत्नी कौशिल्या और बेटा बीरू बच्ची चारू होते थे l मजदूरी करके पति-पत्नी जीवन यापन करते हुए अपने दोनों संतानों को शिक्षित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते थे l भोजन के उपरांत सोने के समय बच्चों के भविष्य सवारने की परिकल्पना में खोया हुआ पिता स्कूल किताबें ,यूनिफार्म और उनके लंच टिफिन पर  विचारमग्न था कि तभी रात में किवाड़ पर  अचानक दस्तक हुई l किवाड़ खुलते  ही एक घबराये हुये  व्यक्ति ने  बताया कि “उसने  अपने खेत को बेचकर बीमार बेटे की दवा कराने को पैसे रखे हैं है, कुछ गुंडे लूट के उद्देश्य से उसके पीछे पड़े हैं ,दया पूर्वक मुझे बचा लीजिये l”

       रामगरीब उस डरे हुए व्यक्ति को रात्रि का बचा खुचा भोजन खिला कर बगल की छोटी सी कंडे की कोठरी में रात बिताने करने की व्यवस्था कर दी l सुबह  खेत में गहमा गहमी मची थी समाज के मुखिया , पुलिस तथा लोगों का हुजूम था l रामगरीब के घर से लगे खेत में एक लाश पड़ी  पाई गयी ,यह वही व्यक्ति था जो कल रात घबराई अवस्था में शरण माग रहा था l  बेचारा अपने बेटे की दवा कैसे करा सकेगा, अभागा कहाँ का है कोई सुराग भी नहीं बता सका था l  गुंडों से बचता भागता जैसे तैसे थक कर सो गया होगा l जालिमों ने न जाने कब उसकी नृशंस हत्या  कर दी ,कोई आहट भी न मिल सकी , पुलिस ने पंचनामा बनाया ,लाश को कब्जे में लेकर पुलिस की तहकीकात बढ़ी जिसमे  पुलिस ने दलील दी  कि खेत बेचने के बाद रकम मृतक के पास से गायब पाई गयी ,मृतक के सामान रामगरीब के घर में पाए गए और रामगरीब के खेत में ही हत्या के औजार बरामद किये गए l इन साक्ष्य सबूतों के आधार पर रामगरीब को अदालत ने मुजरिम ठहरा दिया l पूरे गाँव के लोग हाथ बंधे खड़े रहे  किसी एक ने भी रामगरीब के पक्ष में कोई सफाई नहीं दी सिर झुकाए पुलिस दस्ते के साथ गिरफ्तार होकर चला गया ,उसे विश्वास था कि वह निर्दोष है शीघ्र ही उसे छोड़ दिया जायेगा l

     जनमानस में एक विश्वास है कि जब दो व्यक्ति आपस में झगड़ते हैं तो अदालत में देख लेने की बात करते हैं इसका अर्थ यह है कि न्याय प्रक्रिया में सत्य की विजय होती ही है, कहावत  भी हैं कि “सत्य परेशान हो सकता है पर पराजित नहीं” l  वैसे भी न्याय का सिद्धांत भी सुनने को मिले थे  कि “सौ दोषी बच जाएँ किन्तु एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए” यह सब सुन कर मन को बड़ा ढाढस मिलता था l तंगहाली ने वकील करने से मना कर दिया सरकारी सहायता पर उन्ही के वकील उन्ही की दलील करते नजर आये l सारे विश्वास लडखडाते नजर आये जब अदालत ने दस वर्षों की कठोर सजा का फैसला सुना दिया l 

        रामगरीब के जेल जाने पर बीरू और चारु को स्कूल में तरह तरह के अपमान सहने पड़े ,पिता के  अपराधी होने पर समूचा परिवार निन्दा का पात्र  हो गया जिसके कारण परिवार पूरी तरह से निराश होकर टूट- बिखर  चुका था l अब कौशल्या घरों में चौका बर्तन करके खुद और बच्चों का  पेट पालती रही स्कूल में बच्चे अपमानित होने का दंश सहते रहे इस न्याय के  दंश ने  अपना असर दिखाया जिससे बच्चों ने अंत में पढाई छोड़ दिया l गाँव का मुखिया हाकिम सिंह कौशल्या पर बुरी नजर रखने लगा था l  कौशल्या को  मदद करने के बहाने उसे घर बुलाता रहा ,अवसर पाकर अब उसके साथ हाकिम दुराचार करने लगा जिसकी भनक पुलिस प्रशासन को नहीं पड़ने दिया l आगे से परिवार को जान से मारने की धमकी देकर उसका शोषण करता रहा l  कुछ दिनों बाद उसकी बेटी  चारु को अपने आदमियों से गायब करके महानगर में ऊंचे दाम में  बेच दिया l इसी दौरान बढ़ते अत्याचार से डरा सहमा बीरू घर से भाग गया l

      मन में  बेचैनी ओढ़े जवान होता बीरू बाहर रहते हुए अपनी बहन चारू का पता लगाने को और हत्या के असल अपराधी को खोजने की ठान रखी थी l गाँव के  दारु अड्डे में चारू के अपराधी का पता चल गया जिसके लिए  बड़ी ही मशक्कत के बाद उसने पुलिस को  सहायता के लिए तैयार किया   स्थानीय सूत्रों के आधार पर हाकिम सिंह का  एक कारिन्दा पकड़ा गया जो पूरी कड़ाई से पूछ ताछ करने पर असल अपराधी हाकिमसिंह का नाम लिया l हाकिम पुलिस के  सामने आते ही वह  टूट गया, और सारे गुनाह उसने स्वीकार कर लिए  l नई बात यह सामने यह आई कि रामगरीब जिस हत्या की सजा भुगत रहा था उसका भी हाकिम ही गुनाहगार था l पुलिस ने  हाकिम सिंह की फेहरिस्त रपट अदालत में रखी तो हाकिम सिंह को जेल हुई और आठ सालों तक सजा भुगत रहे  रामगरीब को अदालत ने बरी कर दिया l

      रामगरीब के बरी होने के बावजूद  समाज उसे अपराधी होने का ठप्पा लगा चुका था,लोग उससे बात करने से कतराते थे ,अपराधी को कोई काम नहीं देता l आठ साल कठिन सजा काटते उसकी देह और मन दोनों पत्थर हो चुके थे l जेल से बाहर निकल कर पल भर लगा कि जैसे मछली को जल से अलग कर दिया गया हो l क्या  करे,कहाँ जाए ,गाँव में जो कच्चा खपरैल घर  था  वह खँडहर हो गया है ,उस  घर में पत्नी कौशल्या बीरू चारु कोई न थे l रामगरीब दिन भर पत्नी ,बीरू और चारु की खोज  में पागलों की भांति भटकता रहता ,रात में खुला हुआ भुतहा सा  घर अपनी लुटने की दास्ताँ बताता  रहता l अब तक उसका समूचा अस्तित्व प्रश्न चिन्ह बन चुका था निर्दोष होकर भी आठ साल की कठोर सजा भुगतने के बाद ..क्या मिला बरी होकर…जीवन के आठ साल वापस तो मिलने से रहे ,पत्नी के साथ दुराचार ,फूल सी कोमल बेटी चारु  की पढ़ाई छूटी, उसका गायब होना ,बीरू की भी पढ़ाई छूटी अब उसका दर दर भटकना एक पिता की आत्मा को झंझोड़ कर रख दिया l क्या सपने संजोये थे बच्चों की शिक्षा के लिए, जिंदगी ने कैसा मजाक खेला मेरे साथ ,अब तक जो भी हुआ..क्या यही न्याय था, इस न्याय दंश ने चार जिंदगियों को तबाह कर दिया l

     क़ानून किसी की ड्योढ़ी  का मोहताज कैसे हो गया कि निर्दोष की जिन्दगी का लम्बा अरसा क़ानून की भेंट चढ़ गया जबकि असल अपराधी हाकिम सिंह तीन महीने में ही जमानत पर छूट कर आ गया l  उसके घर में अब मन बेमन से कौशल्या काम करती दिखती है तो अपना सब कुछ छीने जाने का अहसास हजारों  बिच्छुओं के डंक सा प्रहार सहनशीलता को चुनौती देता रहता हैं I

      वही कानून जिसके दबदबे से सब चैन से सोते हैं समाज में जब अपराध सिर उठाता है तो क़ानून के भरोसे पर जिन्दगी का भरोसा कायम रहता है ,क़ानून की अदालतें परमेश्वर होतीं हैं और सब लोग सुरक्षित महसूस करते हैं ,सारा देश और समाज इसी के भरोसे चल ही तो रहा है l इसी उहापोह में फंसा बहुत देर तक अपने को समझाता रहा l  

      न्याय के इस रूप को जानने समझने की असफल कोशिश के साथ अंतर्द्वन्द में फंसा रामगरीब को उसी खौफनाक क़ानून से डर लगने लगा l जीवन का बही-खाता मन में उलट पलट करते हुए उसने यह पाया कि न्याय के दंश ने जिंदगी के सारे रास्ते बंद करके शरीर का कतरा कतरा चूस लिया है उसके परिवार की तबाही भी उसी न्याय दंश से हुई है l अब वह पूरी तरह से लुट-पिट चुका है l अपने पुराने घर और समूची जिंदगी का अंतर्दर्शन कर मन वितृष्णा से भर उठा l अब किसी  फैसले की घडी आ गई ,सोचकर उठा l  अगले ही पल उसका पूरा घर धू – धू करके जल रहा था और वह जोर-जोर से आर्तनाद करते हुए जल रहे अग्नि पुंज की लपटों में समा गया, गाँव  के सारे लोग तमाश बीन की भांति देखते रहे  l

—बनवारीलाल राय ,सतना

पिता

असफल न्याय