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न्याय व्यवस्था

न्याय  व्यवस्था   है अन्यायी,
राजा बना  हुआ  अततायी l
घुन  सा चाटे  अर्थ व्यवस्था ,
जात  धरम  की  गहरी  खाई  l

चापलूस   की   टीम   बना ,
भावों  का   शोषण  है जारी l
प्रजातंत्र  की  उखड़ी  साँसें ,
जनता  किससे  कहे बेचारी l
 
मंदिर मस्जिद की बातों पर ,
वे अपना  जुगत   भिड़ाते  हैं l
हम खून औट कर टेक्स भरें ,
वो   बैठे    बैठे    खाते    हैं  l

न्याय प्राप्ति  की  चाहत में ,
सारा   जीवन  खप जाता है l
वह अपने  मुद्दों की खातिर,
रात्रि  कोर्ट   खुलवाता    है  l

उनके  पेंशन वेतन कुछ भी,
पल  भर   में  बढ़  जाते   हैं l
हम  पूरे जीवन खप कर भी,
पेंशन   वंचित    रह जाते हैं l
 
जिसकी लाठी भैंस उसी की ,
मंच   उसी   का   माना    है l
छप्पन  इंची  भांटगिरी   को,
राष्ट्र गीत    सा   गाना  है l

पाकनीयती

लॉक डाउन की आहट