छलक रही अविरल अनुपम ,
ममता की वह छाया तुम हो l
तुम दधीचि सा त्याग समर्पण ,
जीवन के योद्धा भी तुम हो l
तिल तिल जल दीपक सा तुमने ,
हमको आत्मप्रकाश दिया l
संरक्षक का भाव तुम्हीं दे ,
ऊर्जा का संचार किया l
तुमने बाँधी नीव हमारी,
संस्कार का कवच दिया l
बचपन में पकड़ी थी अंगुली ,
आज समूचा विभव दिया l
तुम हो तो जग है अपना ,
तुम बिन लगता अन्धकार l
कहाँ विधाता को मै खोजूं ,
जब तुममे पाया संसार l
तुमसे जिद्दी बालक बनकर ,
हम रहे छीनते सुख साधन l
मेरी उन्नति की चाह लिए ,
तुम हार गए खुद अपनापन l
सिद्ध हुई जब जीवन गाथा ,
तभी वृद्ध तुम बन आये l
हे अनुभव के चिर प्रकाश ,
कोई क्लेश तुम्हे न छू पाए l