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आक्सीजन बिन कोई मरा नहीं

जीवित   लाशें  बोल   उठी,

बिन आक्सीजन नही मरे,

मुर्दे दुख से चीख पड़े

हम मरों की बातें कौन करे l

क्या आसमान से बरसी लाशें,

गंगा   में  जा    समा   गयी ?

मिल कर यूँ  षड्यंत्र किया ,

राजा” को तिलमिला गयी ?  

कोरोना मानो हार मान कर,

राजा   के   शरणागत था l

तभी चुनाव ,कुम्भ, रैली का ,

राजनीति  में स्वागत  था l

अपमान यातना झेली हमने ,  

टायलेट  के  गलियारों  पर l

मेरे बच्चे खोज  रहे   थे ,

गड्ड   लगी  अम्बारों   पर l

बंद  लिफाफों  में  कैदी सा ,

मुझको कोई   जला  आया l

ताक रहे थे अग्नि दाह  को,

चुपके   से   दफना  आया l

एक नहीं  हम  खूब मरे थे,

साँसों    की   बीमारी   में l

प्राणवायु को तरस गए थे ,

राजा   की   दम-दारी   में l

वर्षा जल जब बहा लेगयी ,

नदियों  और  कछारों  में l

अकड़ी लाशें स्वाद बनी ,

तब संसद के गलियारों में l

अब  कहते  हैं  नही  मरा,

आक्सीजन के बिन कोई l

क्यूँ  न  फटगई छाती तेरी,

न कंठ रुंधे , करुणा  रोई l

 तेरा  कोई  मरा नही  था,

बेदर्दी सा  मन  जिन्दा है l

झूठ  बोल कर  ढीठ बना,

अब तक,न हुआ शर्मिंदा है l

मृतकों का  ख़ासा  अपमान ,

करने को  क्यूँ  सोच  लिया l

दफना कर भी ठीक किया पर,

कफन को  काहे नोच  लिया l

दंगा..

आज की हवा