मैं कलम हूँ
जो देखता हूँ लिखता हूँ,
विद्यार्थी से लेकर,
विद्वान तक,
मैं ही दिखता हूँ l
बच्चे के हाथों मे विकास,
अध्यापक के हाथों सृजन,
पत्रकार के हाथों आजादी,
और डाक्टर के हाथों जीवन,
व्यवसायी के हाथों बिक्री,
जज के हाथों डिक्री,
मैं ही लिखता हूँ l
मैं नेता पर नेतृत्व की
पाठशाला हूँ,
आजादी की दीप,
प्रज्वलित मुझसे हुईं,
मैं चौथे स्तम्भ का,
एक मजबूत दिवाला हूँ l
मैने बनाया राष्ट्रपिता बापू,
लोकतंत्र शिल्पी अम्बेडकर,
प्रजातंत्र की पकड़ मे,
मेरा होना,बड़ा जरूरी है l
मेरी आजादी का खयाल रखना,
लोकतंत्र की मज़बूरी है l
आजकल मुझ पर पहरा है,
लिखना है बहुत,
मन का जख्म,
बहुत गहरा है….l
in कविताएँ