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मौत की दस्तक

मौत रोज दस्तक देती है
जिंदगी उसे पीछे  धकेल
उत्साह के संग  आगे बढ़कर ,
वय बाधा  समेट लेती है l
जिन्दगी हर रोज  बढती
नित नए प्रलय से बेसुध  ,
यकायक हावी हो मौत 
सांस रोक देती है   l
मकडजाल में शिकारी सा
क्रूर पंजों में दबोच कर ,
जिंदगी को हराने के लिए
मौत रोज दस्तक देती है l

जिंदगी हार न मानने को 
पीछे छोड जाती है अपनी ,
शौर्य गाथा पहचान श्रृजन
सदा अमर कर  देती है  l
जिसे न समेट पाने  की
खीझ से ,लाचार मौत  ;
जिन्दगी मिटाने को रोज
सन्देश हमें  देती है   l
कड़ी जंग जिन्दगी संग
मौत के इसीलिए ही होती है ,
महा सत्य बन मौत सदा
जीवन में  दस्तक देती है l

“मौत”तुम आओ  जब  भी
मेरे तरकश   तैयार मिलेंगे ,
तुम क्षण भर ही ठहरो….. 
हम  तुमसे दो चार  करेंगे  l
मेरा क्या बिगाड़ पाओगी तुम
बस लोगी मेरा मृत शरीर  ,
पर मेरी  कर्मठता के आगे 
तेरी हार बने  गंभीर   l
मेरी जीत का  वह अहसास 
तुम्हे नतमस्तक कर  देती है,
इसी खीझ से पीड़ित मौत 
तू रोज  दस्तक देती है  l  

भटकन

कर्ज की खुद्दारी