मौत रोज दस्तक देती है जिंदगी उसे पीछे धकेल उत्साह के संग आगे बढ़कर , वय बाधा समेट लेती है l जिन्दगी हर रोज बढती नित नए प्रलय से बेसुध , यकायक हावी हो मौत सांस रोक देती है l मकडजाल में शिकारी सा क्रूर पंजों में दबोच कर , जिंदगी को हराने के लिए मौत रोज दस्तक देती है l जिंदगी हार न मानने को पीछे छोड जाती है अपनी , शौर्य गाथा पहचान श्रृजन सदा अमर कर देती है l जिसे न समेट पाने की खीझ से ,लाचार मौत ; जिन्दगी मिटाने को रोज सन्देश हमें देती है l कड़ी जंग जिन्दगी संग मौत के इसीलिए ही होती है , महा सत्य बन मौत सदा जीवन में दस्तक देती है l “मौत”तुम आओ जब भी मेरे तरकश तैयार मिलेंगे , तुम क्षण भर ही ठहरो….. हम तुमसे दो चार करेंगे l मेरा क्या बिगाड़ पाओगी तुम बस लोगी मेरा मृत शरीर , पर मेरी कर्मठता के आगे तेरी हार बने गंभीर l मेरी जीत का वह अहसास तुम्हे नतमस्तक कर देती है, इसी खीझ से पीड़ित मौत तू रोज दस्तक देती है l |
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