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विधाता

सूरज     से    जो   खेले

प्रलय  को बाँहों  में ले ले 

सौरमंडल का परिचालक

जिससे प्रकृति फले फूले

       काल   की    गति    को

       झूला  बना कर जो  झूले

       सहस्त्र   वर्षों  का   लेखा

       भूले   से   भी,   न   भूले

कहीं    भी     कभी    भी

बिना   उफ़   के   चल  दे

अपनी   चाल  चल    कर

दुनिया   कभी    बदल  दे 

       आर्तनाद     सुन     सदा

        एकपग   में   दौड़  आता

        वह    रक्त   बन  रगों  में

        ऊर्जा   के   श्रोत  लाता

प्रबंध   हर   नखत   के

जड़  चेतना  बखत  के

कोई  जो  कर है  पाता

एक  तू  ही  है  विधाता

शिल्पकार की पीड़ा

सांसों का मोल