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हठयोगी..

जब जब चाह तड़प बनकर ,

लक्ष्यों में तब्दील हुई

क्या मजाल कि रोक सके पग,

अंधड़ या तूफ़ान कोई

ऐसे ही हठयोगी जो ,

तूफानों से टकराते हैं

इतिहास में लिखकर नाम स्वयं

दुनिया में अमर हो जाते हैं

रुकना झुकना भूल चुके,

बिसराई सारी अहं जाल

सभी परिस्थिति डटकर झेलें,

चाहे जितनी हो विकराल

तूफानों को राह बनाकर ,

बदल दिया प्रलय-लय को

आत्मसात ही लक्ष्य हो जिसमें

मानवता ही तय हो

रुकते कैसे पग राही के जब

लपटों में राहें खुलती हों

बन जाता तब संविधान  

जब लक्ष्य तड़प बन झुलसी हो

वर्णमाला

एक जोड़ी चप्पल