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खजाने का नाग

र भी नही रहा मुआ ..इतने दिनों से खटिया  तोड़ रहा है ,गुस्सा तो नाक में ऐसी ,कि अभी उठकर तांडव ही मचा देगा ” बहू बिन्देसरी कहते हुए दरवाजा पटकते हुए बाहर निकली l

कामता  ने बहू का मुह ताकते हुए संकोच के धीमे स्वर में डरते-डरते  कहा – बेटी.. बहुत देर तक रोका ..पर बुढापे का शरीर…नही रोक सका… l

 ये लो साफ़ करके परत लगा लो,नियंत्रण नहीं रख सके तो भोजन में काबू रखो l बिन्देसरी ने एक कपडा फेककर कहा –

     कामता प्रसाद निहायत ईमानदार  पटवारी थे  अपने समय में खूब प्रतिष्ठा थी रिटायर होने के बाद दो बेटों मे से एक जोगेश  शिक्षक था  दूसरा बागेश घर में खेती किसानी में हाथ बटाता l पटवारी कामता प्रसाद अब अस्सी बरस की आयु पार कर चुके थे पेंशन और खेती बाड़ी से गुजारा हो रहा था l मान सम्मान और  सम्पन्नता के कारण आज भी मिलने वाले लोग आँगन में बैठे दिखते हैं l रिटायर होने बाद दस बीघा खेत और कुछ पैसे जोड़ रखे थे l जोगेश हमेशा खेती किसानी के चक्कर में पटवारियों से मिलता जुलता था उनकी आन बान शान देख कर हमेशा अपने रिटायर पटवारी पिता की आमदनी का अंदाज लगाता रहता था l

    “देखो जी अब बाबूजी की देख रेख के लिए कोई नौकर रख लो मेरे से नहीं होता उनकी सेवा सहाई,कही भी कभी भी उनकी टट्टी खुल जाती है ,पूरा घर गन्दा करके रखा है खाना भी इतना खाते हैं कि जाने किस जनम के भूखे हैं तभी तो पेट के भीतर जो डालेंगे , निकलेगा ही” -बिन्देसरी  ने कहा  l

जोगेश ने सहमते हुए कहा- बाबूजी की तबियत बिगड़ी है, दवा-दारू पैसे भी लगने ही हैं l

      “न जाने कब तक लिखा है बुढ़ऊ मरने को हैं पर अब तक पैसे कौड़ी का कोई हिसाब नही” – बिन्देसरी बोली

जोगेश ने धीमे स्वर में कहा -बच्चों के स्कूल की फीस और घर का खर्च भी उन्ही से चलता है..

-“देखो जी बाबूजी से बात कर लो खेत-पाँत अकेले बागेश कर ही रहा हैं कहीं बाबूजी को कुछ हुआ तो सब कुछ उसी के हाथ लगेगा पैसे कौड़ी तो ऐसे दबा के बैठे हैं जैसे खजाने का नाग l

बागेश ने बरसात में कटोरे जैसा भरा खेत से पानी निकाल कर आते ही जोगेश से कहा -भैया खेत का काम मुझ अकेले के बस का  नहीं है ,बाबूजी जब से खटिया पकड़े हैं तबसे खुद ही सब कर रहा हूँ ,खेती के लिए बीज खाद जुताई आदि के खर्चे  बहुत हैं ,आप मेरी  मदद करें  l

देख भाई , मै ठहरा नौकरी पेशा वाला,  तो अब मुझसे आशा करना बेकार है -जोगेश ने कहा

“भैया बाबूजी की पेंशन से अपना भी खर्च चलाते हैं अपनी वेतन साफ़ बचा लेते हैं यह ठीक नही है l बाबूजी की दवा दारू भी जरूरी है इसलिए उनकी थोड़ी सी  पेंशन पर घर खर्च न चलावें l  अभी बाबूजी की चिकित्सा होगी तो वे कुछ और समय जी लेंगे इसी तरह पेंशन भी तब तक चलती रहेगी ,गुजारा भी चलेगा ” -बागेस ने जबाब दिया

यह बातचीत सुनकर बिस्तर पर पड़े पड़े कामता प्रसाद अपने भाग्य को कोस रहे थे कि- चार बरस हुए इनकी माँ ने साथ छोड़ दिया उन्ही दिनों बागेश की शादी के लिए उसने दबाव बनाया था लेकिन पढाई लिखाई के चलते उसने शादी से मना कर दिया ,पढाई तो हो गई पूरी ,परन्तु बेरोजगार होने से शादी के लिए कोई रिश्ता ही तैयार न हुआ l अब खेती बाड़ी का ही सहारा है l बागेश की शादी के लिए कुछ पैसा बचाकर  रखा था सो बहू की आँख में “खजाने का नाग” के रूप में चुभ रहा है l  अगर मै आज मर ही जाऊ तो ये सब रोयेंगे तो सही,परन्तु  डर सताता रहेगा कि “कही बंदा जी न उठे ” l जी उठने के डर का बबाल इतना विशाल हो चुका था कि अब जीने का मन भी न रहा l

     रात दस बजे अचानक बाहर का दरवाजा किसीने ख़टखटाया आगंतुक ने बताया कि कामता प्रसाद का कोई सहकर्मी था ,जिसे देखकर दोनों को पुराने दिन याद आये l आगंतुक भी पटवारी रामलाल था जिसे निलंबन के संकट काल में कामता प्रसाद ने सहारा दिया था l उन पुराने अहसानों को वह भुला नही सका था l जिसकी कृतज्ञता प्रकट करने  का उचित अवसर देखते हुए रामलाल ने अपने मित्र को ले जाकर  पास के किसी वैद्य को दिखाया l मित्र की देख रेख में चिकित्सा जारी रही  धीरे धीरे कामता प्रसाद ठीक होंने लगे l एक हफ्ता बीतते ही रामलाल चलने को हुए तभी कामता प्रसाद ने  रामलाल की नटखट बिटिया की चर्चा छेड़ दिया तभी रामलाल ने बताया कि अब वह पढ़ लिख कर बड़ी हो गयी है  उसकी शादी के लिए प्रयास में हूँ  l कामता प्रसाद ने प्रस्ताव बागेश के लिए रखा तो रामलाल सहर्ष  तैयार हो गए l बागेश को  पिता की तबियत और पेंशन की मियाद बढ़ते ही और ऊपर से अपनी शादी होजाने से खुशी का ठिकाना न रहा नई बहू का आगमन हुआ l बिन्देसरी के बीच उसकी  नोक झोंक भी शुरू होने लगी बात बढ़ते-बढ़ते  दोनों भाई परिवार के बंटवारा की बात पर जा अटके l

कामताप्रसाद को अपने वे बुरे दिन नहीं भूले थे जब बिस्तर में ही  नारकीय जीवन बीता था उस पर बिन्देसरी का जहरीला व्यवहार कांटे की भाँति चुभा था l

नई बहू के आजाने के बाद बागेश का आत्मविश्वास अच्छा खासा लौट आया था l नई बहू के पिता रामलाल ने बार-बार अपनी बेटी को समझाया था कि किस तरह आड़े वक्त में कामता प्रसाद उसके काम आये थे सेवा समर्पण का वचन पिता को देकर ही बिटिया ने मायके से बिदा ली थी  l  खुशी की बात यह थी की वह अपनी सेवा से ससुर कामता प्रसाद का दिल जीत चुकी थी रोज दवा ,नाश्ता ,भोजन घुमाने टहलाने  का पूरा ध्यान नई बहू रखती थी l

      जोगेश अपनी पत्नी से शंका जाहिर करते हुए बोला कि -इन दिनों बाबूजी ,बागेश और उसकी पत्नी पर ज्यादा खुश हैं कही पूरी संपत्ति उसके नाम न कर दें…अपराध बोध को दबाते हुए  बिन्देसरी ने पति से कहा क्यों न हम अभी अलग होने की बात को रोक दें  और बाबूजी की पूरी नकद संपत्ति का टोह लेते रहें अगर इस बीच बाबूजी को कुछ हो भी गया तो पंचायत लगवा कर आधी संपत्ति ले ही लेंगे l

     इधर बागेश और उसकी पत्नी दोनों ही कृषि कार्य में आधुनिक बदलाव लाते हुए नई शैली का उपयोग किया जिससे उस दस  बीघा खेत ने सोना उगलना शुरू किया l कामता प्रसाद ने खेत का हिसाब किताब नई बहू की जिम्मेदारी पर जारी रखा ,उधर  बड़े बेटे ने स्वयं को घर और पिता से पृथक कर के  दूर दूर से जायजा लेना शुरू कर दिया था कि बाबूजी को कही न कही बड़े बेटे की जरूरत पड़ेगी l अपराध बोध इस सीमा तक था कि बिन्देसरी  ससुर का सामना करने से कतराने लगी थी l

अब कामता प्रसाद को जिन्दगी की थकान का अहसास बढने लगा एक दिन बागेश की पत्नी को बुलाकर  कुछ देते हुए समझा दिया l बिन्देसरी  ने इतनी निकटता को बड़ी गंभीरता से लेते हुए अपने पति से बोली-तुम्हारे बाबूजी ने नई बहू को कुछ दिया  और एक बड़ा कागज़ भी दिया है यानी पूरे जेवर और जायदाद छोटी बहू को दे ही दिया l

        अगले दिन सुबह कामता प्रसाद ने शरीर त्याग दिया खबर फैलते ही गाँव में पूरे जनसमूह के साथ  पूर्ण औपचारिकता के साथ  अंतिम संस्कार किया गया l अगले दिन सुबह दोनों भाई पारिवारिक समूह के साथ बैठे जिसमे छोटी बहू ने एक पोटली निकाल कर कहा – बाबूजी ने यह पोटली कल मुझे दस्तावेज के साथ दिया था l जिसे खोल कर देखा ,जिसे सभी के सामने पढकर सुनाने के लिए एक तीसरे व्यक्ति को चुना गया l

        उसने सुनाना शुरू किया कि- यह पोटली तुम्हारे माँ के द्वारा सभी जेवरातों के साथ छोड़ीं गयी है जिसमें हर वस्तु  को सुनार से  बराबर बराबर बना कर तौल करके दो हिस्से किये गए हैं , दोनों भाई एक-एक पोटली प्राप्त करें l एक दस्तावेजी कागज भी साथ में है, जिसमे  बड़े बेटे जोगेस के दोनो बच्चों के नाम नकद  10 -10 लाख बैंक में जमा हैं जो उनकी पढाई में काम आवेगा और दस बीघा खेत में से  पांच-पांच बीघा दोनों भाई अपने-अपने नाम करा लेवें इसके अलावा कोई धन शेष नहीं है बहू के द्वारा , दिया हुआ परत के लिए कपडा मेरी पेटी में साफ़ एवं सुरक्षित है उसे दे देना , एक चिट्ठी भी सबके सामने जरूर पढ़वा देना  l

  प्रिय बेटो ,मैंने बड़े मेहनत ,ईमानदारी से यह सब जोड़ा है जो मेरे बाद तुम्ही लोग हकदार हो ,मुझे अपने बुरे समय का बड़ा मलाल है जिसमे खुद का खयाल रख पाने में सफल नही रहा,मै खजाने का नाग बना रहा l मै यही चाहता था कि मेरे बच्चे मेरी तरह मेहनत कश और ईमानदार रहें  इसलिए उन्हें कभी अपनी संपत्ति का भान नही होने दिया अन्यथा वे आपस में लूट खसोट में व्यस्त हो जाते या निष्क्रिय या आलसी हो जाते  l हर बुजुर्ग यही चाहता है कि जिस संपत्ति का एक-एक कतरा उसने अपने बाहुबल से बनाया हो उसका स्वामी होने का अहसास उसे मृत्यु होने तक बना रहे ,इसलिए सब कुछ सुरक्षित रखने के लिए यह सब जरूरी था उसे “खजाने का नाग” जैसा संबोधन संरक्षण और प्रतिदाय प्रथा का अपमान है l वृद्धावस्था में मेरे बीमारी की घड़ी में बिस्तर में दस्त छूट जाने की दशा में जो मुझे सुनना होता था उसका जिम्मेदार मै नही था बल्कि उम्र की मजबूरी थी जिसमे हर पिता को संतान से सेवा की अपेक्षा होती है l भोजन लेने के पहले मै स्वयं डरकर कम खाता  था कि दस्त नियंत्रण में रहे पर बुढ़ापा और बीमारी किसी के सगे नही होते यह सन्देश तुम्हारे पुत्रों तक देना चाहता हूँ कि आने वाले समय में तुम खुद ऐसे कर्म-फल से  बच सको l तुम्हारा ही दिया कपडा तुम्हे कर्म-फल की याद दिलाता रहेगा ,जिससे तुम्हारा प्रारब्ध सुधर सके l बस इतना ही …

             सभी ने उस सद्भावना पूर्ण न्यायोचित  बटवारे को सुना और जाना कि ‘बुजुर्ग कभी संपत्ति पर बैठे नाग नही होते बल्कि वे हमारे छत्रछाया के लिए एक धर्मपुत्र  को सैनिक की भाँति नियुक्त कर जाते हैं l

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– दुश्मनी