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खीर पूड़ी –

यूँ तो वृद्धाश्रम बनते ही वृद्ध लोगों के लिए हैं ,जो जीवन जी लेने के लक्ष्य को अंतिम स्तर तक  पहुंचा  देते है , जब कोई उपेक्षा, निराशा और कुंठा से भर जाय तो जीवन जीने की इच्छा शून्य होकर अंत की प्रतीक्षा के अलावा कोई रास्ता नही बचता l फिर भी अक्सर वृद्धाश्रम में रहकर लोग अपने संतान के लिए सद्-बुद्धि  की प्रार्थना ईश्वर से करते हुए, नित्य प्रति सुबह से रात तक दरवाजे पर आहट की प्रतीक्षा करते रहते हैं कि ,किसी भी दिन , किसी समय कोई आयेगा और उसे अपनाकर घर लेकर जायेगा ,मान मनुहार करेगा l माता पिता अपनी संतान को कभी भी अपराधी नहीं ठहराते l उनकी हर गलती को क्षमा करते हुए “आगे ठीक होगा” सोचकर जिंदगी को आगे बढ़ने की इजाजत जारी रखते हैं l  इसी तरह उन्हें अपने हिस्से की जिंदगी को खयाली गलत फहमी में मिलने वाले सुख का आनंद लेते हुए एक-एक दिन रोज बीतता, अंत में एक दिन जीवन के परम सत्य को स्वीकार करना ही पड़ता है l इस राह से हर व्यक्ति को गुजरना ही है l आज वह पुरानी सोच अपना ही अस्तित्व खोज रही है, क्या दिन थे संयुक्त परिवार में सबसे बड़े व्यक्ति  मुखिया होते और  बट वृक्ष की भाँति फ़ैल कर वे वृद्ध और कमजोर होकर भी सबकी खुशी में अपना सुख खोज लेते थे l उस बुढापा में जो बड़े होकर सम्मानित होने का अहसास, और  समर्पण से जो ऊर्जा मिलती थी वह युवावस्था की ऊर्जा से कई सौ गुना ज्यादा होती थी l

      दामिनी अपने पति के जीवन काल में अच्छे अर्थ व्यवस्था की मालकिन थी l कोई अतिशयोक्ति न होगी कि  वे दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे ,उनके लिए वेतन का दिन खुशी का क्षण होता था ,जिससे उस दिन को यादगार बनाने के लिए खीर पूड़ी बनाकर पति को खिलाकर दिन की शुरुआत होती थी यही उनके भावुक क्षण होते थे l ऐसे ही अवसर भावनात्मक होकर  ख़ुशी के क्षण के रूप में त्यौहार बन जाया करते  हैं l

       दामिनी अब एक अभागी स्त्री थी उनके पति जब स्वर्ग सिधारे तो जीवन का अकेलापन उन्हें सांप की तरह काटने दौड़ता ,वैधव्य ने संसार के उजाले से अलग थलग कर दिया l परिवार के नाम पर एक बेटा बहू और छोटा सा पोता थे l जिनके बीच शेष जिन्दगी बसर करनी थी पति की पेंशन अब जीवन का आधार था  l बेटा को  एक कंपनी में नौकरी मिल गयी थी जो घाटे में होकर कर्मचारियों की छटनी तक पहुँच  चुकी थी l बड़े ही बिनती भाव के बाद औने पौने वेतन पर नौकरी बच गयी, जिससे घर  खर्चा का बोझ सम्हला हुआ था l लेकिन अब भी दामिनी अपने पति की पेंशन लेने जाती तो अवश्य खीर पूड़ी बनाकर घर के लोगों को खिलाती,अब जीवन के बचे खुचे काल में ख़ुशी खोजने का एकमात्र यही बहाना था l  बहू शायद  इस भावुकता और पति  प्रेम के स्मृति स्वरुप को समझ न सकी और अपनी सास को खीर पूड़ी के स्वाद का लालची समझ बैठी l परिणामस्वरुप  जब भी पेंशन का दिन होता तो सासू माँ को खीर पूड़ी जरूर खिलाती और चल पड़ती बहू को साथ में लेकर पेंशन लेने  l

     परिवार के प्रति जब उत्तरदायित्व की सोच धूमिल होती है तो इच्छाओं के घोड़े तेज दौड़ने लगते हैं  इसी प्रकार धीरे धीरे परिवार की जरूरतें बढती गयीं , विलासिता की चीजें घर में आकर जमती गयीं और खर्चे के साथ साथ  कर्जे का भी आकार बढ़ने लगा l कम्पनी की नौकरी से घर का खर्चा तो चल जाता पर केवल वेतन से उतने मजे नही थे , आज की जरुरत में बहू को मंहगा मोबाईल भी चाहिए और भी दिखावा की जरूरतें इतनी बढ़ गयीं ,पोते को स्कूल भेजने का उत्तरदायित्व भी आ पडा था,जोकि अब दामिनी के पेंशन पर खर्च पसर चुका था l जब घर की गृहिणी में बरक्कत की सोच बलवती नही होती तो ,घर आर्थिक तंगी और बदहाली के मकडजाल में बुरी तरह उलझ कर रह जाता है l

       बैंक के बाहर लोगों का जमावड़ा,और वृद्ध लोगों के भीड़ से पता चलता था कि आज पेंशन का दिन है किनारे एक टिफिन लुढका हुआ पड़ा था जिसमे खीर औंधे मुख भूमि में गिरी थी मक्खियाँ भिनक रही थी कुछ पूड़ियाँ अव्यवस्थित पड़ी थी कुछ कुत्तों का ग्रास बन चुकी थी l वही बगल में एक बूढ़ी स्त्री का शरीर तपन के साथ काँप रहा था ,लोग पहिचानने की कोशिश कर रहे थे किन्तु खस्ता हाल बिखरे बाल बूढ़ी स्त्री को पहचानने वाला कोई नही था सब मशगूल थे अपने पेंशन को पाने के लिए बैंक में भीड़ लगाए हुए थे l बुखार से तपते शरीर को देख तुरंत लोगों ने एक रिक्शा पर लादकर अस्पताल पहुचाया l रिक्शा वाले ने बताया कि “यह दामिनी अम्मा है बहूरानी के साथ आईं थी  पर अब वे यहाँ नही हैं l हमेशा ही मै इन्हें बैंक लाता और घर छोड़ता हूँ l”  

          अस्पताल में दामिनी की उचित चिकित्सा होती रही अब दामिनी ठीक हुई तो विचार शक्ति ने अपनी सक्रियता दिखाई ,तभी मनसपटल में  उसे अपने ही स्वार्थी पुत्र और बहू का चेहरा घूमा ,जिससे आती हुई घिन को बहुत नजदीक से महसूस किया l उसके बाद कदाचित कठोर निर्णय लेने को उद्यत हुई l  अस्पताल में दामिनी के साथ हुई घटना को लोगों ने सुनकर अनायास ही उससे  सहानुभूति हुई  और लोगों ने बगल में ही वृद्धाश्रम में रहने की सलाह दिया l

      जब खुद के लोग इतने स्वार्थी हो जाएँ कि पेंशन पाने तक साथ रहें फिर बुखार की हालत में छोड़कर पेंशन राशि के साथ गायब हो जावें ,इतना ही नहीं बेटा-बहू दोनों में कोई भी अब तक खोज खबर लेना उचित नही समझा l उसका जीवित अवस्था में निरादर अंतरतम को झकझोर कर रख दिया तब उचित यही समझ में आया कि स्वाभिमान के साथ बची खुची जिन्दगी पार करने हेतु स्वयं वृद्धाश्रम को स्वीकार कर ले l इस प्रकार दामिनी वृद्धाश्रम में जाकर रहने लगी और पूरी लगन और ताकत से अन्य वृद्धों की भी देख रेख में हाथ बटाने लगी ,यह सब करके उसे आत्मीय सुख मिलता l

      एक दिन बड़ी गाड़ी में एक वृद्ध सज्जन अपनी स्वर्गीय पत्नी के स्मृति में उस वृद्धाश्रम में फल भोजन आदि लेकर वितरण करने आये, वृद्धाश्रम का पूरा जायजा लिया जिसमे दामिनी की सेवा भावना और  समर्पण पूर्ण क्रिया कलाप पर वे अत्यंत गदगद हो गए l उन्हें दरअसल अपने घर की समुचित देख रेख के लिए सुपात्र व्यक्ति की तलाश थी l अब तक  दामिनी एक परित्यक्ता की भांति जीवन बिता रही थी , वृद्ध सज्जन को लगा कि उसकी तलाश पूर्ण हो चुकी है l उन्होंने दामिनी से सादर निवेदन किया कि क्या वे उनके घर बच्चों की देख रेख का कार्य करना उचित समझेंगी l दामिनी ने उन सज्जन का प्रस्ताव सहर्ष  स्वीकार कर लिया और उनकी गाड़ी में बैठकर चली गयी, एक दूसरे बड़े घर की शोभा बढाने ,जहाँ नौकर चाकर ,बड़े बूढ़े के साथ बच्चे भी थे ,उचित सम्मान के साथ वहां रहने लगी l

      दिन बीते पेंशन की अगली तारीख आई तब दामिनी की बहू अपने पति के साथ टिफिन में खीर पूड़ी लिए खोज रही थी ,अस्पताल में उसी रिक्शे वाले ने बताया कि दामिनी अम्मा अब बड़े घर में रहने लगीं हैं जहाँ  उनके अपने बच्चे भले नही हैं, लेकिन वे अपनों से भी बढ़कर उन्हें प्यार देते हैं दामिनी अम्मा अब उस घर में ममता और प्यार की साक्षात् देवी हैं ,उनकी वहां अच्छी देख रेख के साथ सम्मान पूर्ण जिन्दगी बिता रहीं  है l

      बहू बेटे पता लगाते खोजते हुए जब उस घर पहुचे जहाँ दामिनी रह रही थी l तब दामिनी पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर मालिकाना आत्मविश्वास से भरा, चेहरा आभामंडल से तेज दमक रहा था l जिसके समक्ष उनके अपने बेटे बहू याचक की भांति घर चलने की याचना कर रहे थे l स्वाभिमान का नाग फुफकारते हुए  दामिनी को अपने भूतकाल से वर्तमान का मूल्यांकन करते हुए एक महत्त्व पूर्ण निर्णय लेने को ललकारने  लगा  l उसके लिए  अपना बीता घृणापूर्ण व्यवहार अकल्पनीय था l  

       साफ लहजे में दामिनी ने  बेटे और बहू से कहा- कि वह मेरा पिछला जन्म था जिसमे मेरा कोई वश नही था ,किन्तु अब अगली जिन्दगी का निर्णय मेरे वश में है l अब तुम लोगों से मेरा कोई नाता नही,अब जो नाता है इंसानियत का नाता, इससे मेरी जिन्दगी को सुरक्षा और सम्मान भरपूर मिला है l  मेरे अपनो  से बढ़कर ममता स्नेह लुटाने वाले परिवार के बीच मै रहकर खुश हूँ , इसमें मेरा अपना स्वाभिमान भी सुरक्षित है ,जिसमें मैं संतुष्ट हूँ  l बेशक तुमने खीर पूड़ी की प्रथा का निर्वाह किया ,किन्तु अब तक तुम लोगों ने उस पवित्र प्रथा को स्वार्थ लिप्सा तक ही समझा ,जो तुम्हारी समझ से परे था l मुझे अपने बीते कल पर अब कुछ नही कहना, बस तुम लोग अपनी जिंदगी खुशी से जियो l                

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मै लौटूंगा माँ …

संकट बदला अवसर में ..