आप में से कितने लोग भाग्य पर भरोसा करते हैं ,शायद सभी l जब हम प्रयास करके भी असफल हो जाते हैं तो खुद को समझने की प्रक्रिया वहां से शुरू होती है l अगर समझ की दिशा सही हुई तो अपनी कमी को सुधारने की पूरी संभावना बन जाती है ,किन्तु समझ की दिशा गलत होते ही हम भटक कर पूर्वाग्रही हो जाते हैं और कह देते हैं कि प्रयास तो पूरा था किन्तु भाग्य ही खराब था जबकि स्वतः स्पष्ट है कि असफलता एक संकेत है कि प्रयास में कमी रह गयी है l चूक हमारी और दोष मढ देते हैं अनजानी किस्मत को l
वास्तव में भाग्य पर निर्भर होना अकर्मण्यता की ओर ले जाता है ,हमें बहाना मिल जाता है खुद को मिथ्या निर्दोष साबित करने का,ठीक उसी तरह जैसे आँख मूँद कर बिल्ली दूध पिये और सोचे कि कोई नही देख रहा है,अर्थात स्वयं को धोखा देना हुआ l जब हम सूझ बूझ की शक्ति खो देते हैं तो परिणाम को चमत्कार कह देते हैं जैसे कोई जादूगर अपनी हाथ की सफाई दिखा कर लोगों को अचंभित कर देता है ,किन्तु उस हाथ की सफाई का रहस्य उजागर होते ही वह जादू या चमत्कार नही रह जाता ,बल्कि उस क्षेत्र में तार्किकता,सूक्ष्मता और भी बढ़ जाती है l
प्रायः देखा गया है कि लोग अपनी एक मनःस्थिति बना लेते हैं कि अमुक वस्तु उसके लिए शुभ है या अशुभ, दिन दिशा ,रास्ता काटना,टोंका जाना स्वाभाव में गंभीरता से लेते है ,इसकी जड़ में होता है “भय” कि कही असफलता या नुकसान न उठाना पड़े ,फिर आगे असफल हुए या नुकसान हुआ भी तो ठीकरा भाग्य पर ही फूटेगा कि भाग्य खराब था l हर बार अच्छा अवसर आपके सामने आ कर निकल जाता है किन्तु भाग्य निर्भरता सटीक प्रयास तक नही पहुचने देती l एक बार इस “भय” से लड़कर तो देखो निकाल फेंको हाथ की रक्षा सूत्र ताबीज अंगूठियाँ टोटके और मन में स्थित अंध विश्वास के विरुद्ध जाकर तो देखो सारा भ्रम दूर हो जावेगा क्यों कि “डर के आगे जीत” है l
असंभव शब्द की गहराई में जावें तो हमें दिखती है नकारात्मकता, भयग्रस्तता, आलस्य, अवसाद, पलायन, अवरोध,हताशा निराशा जो आगे बढ़ने के सारे प्रयास बंद करके हमें हाथ में हाथ रख कर बैठने पर मजबूर कर देती है यहाँ तक कि विचार शक्ति भी क्षीण कर देती है ,यह असंभव शब्द जीवन में कर्मक्षेत्र “प्रयास” का वह अंश है जहाँ से सफलता की संभावना शुरू होती है इसके भीतर का रहस्य इसके शब्द में ही छिपा है IMPOSSIBLE अर्थात असम्भव इसे अलग-अलग करके पढ़े तो स्पष्ट होगा कि I – M – POSSIBLE अर्थात आई ऍम पासिबल l असंभव शब्द स्वयं कह रहा है कि मै संभव हूँ किन्तु मन का डर इस रहस्य को समझने नहीं देता l विजय श्री मिलते ही मनोबल बढ़ कर दूना चौगुना हो जाता है तब समझ में आता है कि जिस तत्व को दिमाग में भर कर रखा था वह कचरा था विजय पाने के लिए चाहिये समर्पित टूटकर जूझकर प्रयास ,जिसके लिए निर्धारित रणनीति धैर्य और संतुलित आत्म निरीक्षण की आवश्यकता होती है l यह मत भूलो कि जहाँ से तुम्हारा धैर्य टूटता है,वही से सफलता की शुरुआत होती है l