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सुपात्र

क्सर हमें वह मिल जाता है जिसके ऊपर हमारा हक़ नही होता यानी किसी की गुमी हुई चीज को हम अपना समझ लेते हैं ,जो अपना है ही नहीं उस पर कब्ज़ा उचित है या अनुचित..! बहुतों को रास्ते में पड़े मिले हुए पैसे आकर्षक लगते हैं l कुछ तो उसे हराम का मान कर अलग अलग तरीकों से खपाते हैं जैसे अनुचित पैसा पी खाकर खतम करो या दान मंदिर में चढ़ावा चढ़ा दो या किसी भूखे को खाना खिला दो या उस धन को देखो ही मत l इसी अनायास उपलब्धि  को लेकर मनोवैज्ञानिकों ने बताया कि लालच के वशीभूत होने के कारण  मानव को स्वप्न हुआ करता है कि पैसा मिला तो लगातार  मिलता ही गया ,और कड़ी स्वप्न टूटने के साथ ही ख़तम होती है l इसकी भूख अनंत होती है l

मेरे एक मित्र मेरे साथ सड़क में टहल रहे थे वर्षा की रिमझिम हलकी फुहार के बीच आनंद का अनुभव लेते हुए देखा कि कुछ रुपये गोल मोल हालत में पड़े थे और आगे बढ़ गए ,साथी ने पीछे पलट कर नोटों को उठा लिया गिनकर देखा तो 100/- रुपये के पांच नोट  रोल  किये हुए थे l उसने शुरू किया अपना प्लानिंग कि उस पैसों को दारू पीकर ख़त्म करेगा,थोड़ी देर बाद उसने कहा कि उन पैसों का उपयोग खाने में करेगा ,मैंने उसे कहा कि किसी जरूरत मंद गरीब का अनाधिकार प्राप्त पैसा खाने  या दारू पीने  में लगाने से शरीर और स्वास्थ दोनों बिगड़ सकते हैं l उसका विकल्प बदला और कहा कि वह मंदिर में दान कर देगा मैंने कहा कि दान अपने धन का करो जिससे दान की सार्थकता हो दुसरे के पैसे से दान का पुण्य नहीं मिलता , उसका विकल्प  फिर बदला कि उस पैसे से किसी जरूरत मंद को दे देगा,तब मैंने उसे कहा कि जरूरत मंद की जरूरत की तीब्रता तुम नही नाप सकते इससे गलत हाथों में वह पैसा जाने का अपराध  हो जावेगा तब  उसने मेरी नजर ताकते हुए पूछा कि श्रीमान आपने भी नोट देखा था उठाया क्यों नहीं ? मेरा जबाब था ,कि मेरा वह था ही नही l इतनी  देर से उस पैसे को पाकर  पागल हुए जा रहे हो जो तुम्हारा था  ही नही ,अगर उसका उपयोग कर लोगे तो तुम्हारे मन की शांति का क्या होगा ? उसने बिना बिलम्ब किये पीछे पलट कर उन नोटों को उसी तरह उसी जगह रखा और भाग कर मेरे पास आया और बोला अब जाकर पीछा छूटा उस अनाधिकृत पैसे से ,अब मन को शांति मिली l वास्तव में कभी कभी ऊपर वाला  बैठा हमारे नियत की परीक्षा  भी लेता है या फिर हमारा चयन करता है किसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को सौपकर l जिसे खूबसूरती से उस जिम्मेदारी को उठाना हो वह उस नोट को उठावे l  इसी तरह का एक मौका मुझे अस्पताल के बाहर दो हजार के नोट मिलने का मिला उसे देख कर मै नजरंदाज किया  लेकिन गलत हाथों में पड़ जाने का अंदेशा होते ही उठा लिया और बगल की मेडिकल स्टोर में एक बुजुर्ग बैठे थे उन्हें नोट देते हुए निवेदन किया  कि यह नोट मुझे पड़ा मिला किसी असहाय को इस पैसे की दवा देकर कर्तव्य का निर्वाह करने का कष्ट करें l मेडिकल स्टोर के बुजुर्ग सज्जन ने कहा कि धन्य हैं आप मुझे कितनी बड़ी जिम्मेदारी  दे रहे हैं इतनी ही राशि मै भी मिला कर वह जिम्मेदारी पूरी करूँगा किसी असहाय  की मदद हो जावेगी l

आज के जमाने में  जहाँ गुमी हुई संपत्ति का सुपात्र अधिकारी खोजना मुश्किल हो तो उचित है कि सुपात्र का उचित और ठोस विकल्प  तलास कर ऊपर वाले की दी हुई जिम्मेदारी पूरी कर लेने से मन को शान्ति मिलती है हमने उस अनधिकृत राशि को अपने लिए नही लगाया अपितु एक और जिम्मेदार खड़ा करके उस धन को सार्थक सुपात्र के हवाले करने का  प्रयास किया जो ऊपर वाला  भी चाहता था l  हमें रोज आईने के सामने खड़ा होकर अपना चेहरा देखना होता है जो कभी झूठ नही बोलता तो विवेक शील मनुष्य होकर हम अपने भीतर बैठे ऊपर वाले  से खुद को कैसे  छिपा सकते हैं l परम पिता से कुछ भी नही छिपा है  जब भी हम उसके सामने होंगे हमारी गर्दन शर्म से नही श्रृद्धा से झुकी होनी  चाहिए कि हे प्रभु मेरे मन में आपका नियंत्रण हो निस्पृह निःस्वार्थ भाव से आपकी सौंपी हुई जिम्मेदारी सदा पूर्ण करूँगा जिसके लिए आपने मुझे सुपात्र चुना है आपको  कोटि कोटि धन्यवाद l   

असंभव स्वयं में संभव है …

कोरोना पर शिवजी ..