सोचता हूँ जिन्दगी की भाषा से ,
क्या क्या सीखना बाक़ी है
अंधे गलियारों की भटकन
हर रोज कुछ सिखाती है l
पैरों तले जमीन का खिसकना ,
दुरूहता का प्रसंग लिए
नृत्य नाटिका सी ,
जिन्दगी को लुभाती है l
सारा ज्ञानकोष,आत्मविश्वास
मोम की मानिंद
पिघल कर शून्य तक
हैसियत बताती है
अंगुली थाम, बड़ा होते ही
तब्दीलियों की राह में
झूठा ठहराकर
अंगूठा दिखाती है
हम बेवजह जोड़ते हैं सबसे
मेले सी जिन्दगी
हाथ छुडाकर गुमशुदा बनाती है l