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मुर्दों को गीत सुनाता हूँ

कभी उन्हें देखा था जिन्दा
जोश उमीदों का मिश्रण,
जीवन के हर रंगों संग,
मुस्कान भरे यौवन लक्षण l
संचारित ऊर्जा का वह पल,
नहीं भुला मैं पाता हूँ l
अब जाकर यह पता चला,
मुर्दो को गीत सुनाता हूँ l

भावहीन नीरस चेहरों पर,
खुशियों के अभिनव प्रयास l
ऊर्जान्वित करता था सबको,
नवजीवन का ले प्रखर आस l
शायद कुछ तो भ्रम ही था,
कि ख़ुशी उन्हें पहुँचाता हूँ l
अब जाकर ,यह पता चला
मुर्दो को गीत सुनाता हूँ l

दुर्योधन सी लम्पटता पर,
आर्त चीख का गुंजित स्वर l
अट्टाहास मचाता दानव,
स्पंदन हीन हुए रहबर l
मैं चीख रहा था मरघट में
आशा के दीप जलाता हूँ l
अब जाकर ,यह पता चला
मुर्दो को गीत सुनाता हूँ l

मेरे भावों की समझ नहीं,
जिन निरीह पाषाणों से l
धिक्कार भाव से लज्जित हो
विष वेधित होंगे बाणो से l
मैं ही क्यूँ अब ,व्यर्थ करूँ,
पत्थर से सिर टकराता हूँ l
पता चला है, अब जाकर,
मुर्दो को गीत सुनाता हूँ l

–बनवारी लाल राय

मामा की रोटी

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